दरवाज़े पर गारà¥à¤¡ ने à¤à¤• अपरिचित चेहरा देखने पर कà¥à¤› सवाल पूछे और सनà¥à¤¤à¥à¤·à¥à¤Ÿ होने पर गाड़ी अनà¥à¤¦à¤° ले जाने दी। मà¥à¤à¥‡ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ है कि मेरे समय में गारà¥à¤¡ केवल नाम-मातà¥à¤° होता था। उसको à¤à¤• अमरूद दे दो तो खà¥à¤¦ ओसामा-बिन-लादेन को अनà¥à¤¦à¤° जाने की अनà¥à¤®à¤¤à¥€ दे देता। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि धà¥à¤µà¤œà¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ में अà¤à¥€ à¤à¥€ आधा घणà¥à¤Ÿà¤¾ बचा था तो मैने सà¥à¤•ूल का à¤à¤• चकà¥à¤•र लगाने का निरà¥à¤£à¤¯ लिया। जिस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« रूम में पहले जाने में पसीना आता था और अनà¥à¤¦à¤° पहà¥à¤šà¤¤à¥‡ ही अनायास ही हाथ पीछे और चाल सीधी हो जाती थी, वो थोड़ा निरà¥à¤œà¥€à¤µ सा लगा। à¤à¤¸à¤¾ नहीं है कि अनà¥à¤¦à¤° घà¥à¤¸à¤¤à¥‡ ही कà¥à¤› नज़रे मà¥à¤ पर नहीं गड़ गयी थीं लेकिन आज वो नज़रे मà¥à¤à¥‡ टटोल नहीं रही थीं। आज उनमे वो सवाल नहीं था कि 'बेटा आज कà¥à¤¯à¤¾ घपला किया'। अगर उनमे कà¥à¤› था तो बस à¤à¤• रà¥à¤šà¤¿à¤¹à¥€à¤¨ कौतूहल। पà¥à¤°à¤¿à¤¨à¥à¤¸à¤¿à¤ªà¤² का कमरा वैसे का वैसा ही था और सà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿà¤¸ फीलà¥à¤¡ में à¤à¥€ अधिक बदलाव नहीं था अलबतà¥à¤¤à¤¾ उसके चारो ओर की दीवारें ऊà¤à¤šà¥€ हो गयी थी (हमारे कà¥à¤²à¤¾à¤¸ के बचà¥à¤šà¥‡ उसको फाà¤à¤¦ फाà¤à¤¦ के मूवी देखने खूब जाते थे)। फिज़िकà¥à¤¸ लैब वगैरह में L.C.D पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿà¤° लग गये हैं लेकिन वही ३० साल पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ काà¤à¤š की शीशियां जिनके लेबल आज से ६ साल पहले ही धà¥à¤§à¤²à¥‡ पड़ गये थे, वही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ चारà¥à¤Ÿ जिनको शायद ही कोई बचà¥à¤šà¤¾ पढ़ता हो कà¤à¥€, वही आरामतलबी टीचरà¥à¤¸ और खड़ूस लैब-असिसà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ट।
आठबजने में १० मिनट पर मौरनिंग असेमà¥à¤¬à¤²à¥€ की तयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆà¤‚ तो मà¥à¤à¥‡ वो दिन याद आ गये जब à¤à¤• साल बीतने का अनà¥à¤à¤µ सिरà¥à¤« पà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤®à¤°à¥€ के बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से हर साल बढ़ती दूरी के रूप में होता था। बारहवी कà¥à¤²à¤¾à¤¸ और हममे और उन नादानों में १० लाईनों का फासला! पà¥à¤°à¤¿à¤‚सिपल के हाथों धà¥à¤µà¤œà¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ हà¥à¤† और साथ में राषà¥à¤Ÿà¥à¤° गान। मैं ये कà¤à¥€ नहीं समठपाया कि मेरे लिये राषà¥à¤Ÿà¥à¤° गान का महतà¥à¤µ पहले की बनिसà¥à¤ªà¤¤ अब इतना ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हो गया है। पहले जिसे मैं सिरà¥à¤« à¤à¤• गीत और ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ समà¤à¤¤à¤¾ था, अब उसके मायने कहीं दिल से जà¥à¤¡à¤¼ गये हैं। और आज जब मौका सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ का था और सामने तिरंगा लहरा रहा था, मैं अपने हाथों पर खड़े हो रहे रोओं की सरसराहट साफ महसूस कर रहा था। हवाओं मे गूंजते 'ठमेरे वतन के लोगों' के सà¥à¤µà¤° मेरे कानों में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤§à¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¤ हो हो कर दिल की धड़कनों को उकसा रहे थे। मà¥à¤à¥‡ नहीं पता की और लोग à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ महसूस करते हैं कि नहीं लेकिन मैं साफ समठरहा था कि उस दिन कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ नेहरू अपने आà¤à¤¸à¥‚ नही रोक पाये थे।
कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अनà¥à¤¤ में पà¥à¤°à¤¿à¤¨à¥à¤¸à¤¿à¤ªà¤² साहब की à¤à¤• उबाऊ सà¥à¤ªà¥€à¤š (कà¥à¤› चीज़ें कà¤à¥€ नहीं बदलतीं!) और फिर मिषà¥à¤ ान वितरण (२ लडà¥à¤¡à¥‚!)। वापस आते समय सोच रहा था कि उन दो लडà¥à¤¡à¥‚ओं वाले समय के लिये आज मैं कà¥à¤¯à¤¾ नहीं दे सकता।